Thursday, July 05, 2007

Waqt ,...ki shaakh se,...!!!!!!!!!!!!!





















क्यों,
जब हम रौशनी कि आरजू करते है
तो ,हमें गहरे सयें मिलते है...?

क्यों,
ये जिन्दगी,पत्थर कि दुनिया में
जीने के लिए,शीशे के खवाब देती है...?

परर,....
आज बड़ी जद्दो-जेहाद से,.. एक लम्हा,
वक़्त कि शाख से, तोड़ लाया हूँ,...
इस दुनिया पर राज करने का,.....एक जरिया ,
मैं मलिक से छीन लाया हूँ ,.....!!!!!!!!!!

ए-हवा, तू थम जा,...
ए-सूरज, तू मध्हम जा,..
ए-चमन, तू खिल जा,...
ए-वक़्त, तू मेहमान बन जा,..


जो लम्हा में अतीत से उधर लाया हूँ,
मैं उसके साथ जीं भरके खेलना चाहता हूँ,
मैं उस-से पय्यारी बातें करना चाहता हूँ,.....
उस लम्हे....में ,मैं एक ...अरसा बिताना चाहता हूँ,.!!!!!!!!!!!!!!

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